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बचपन...

  • Nyasa Singh
  • Sep 12, 2020
  • 1 min read

कल गौर किया तो कोई आवाज़ दे रहा था हमें

मासूम, नादान आँखों से निहारता था

कुछ जाना सा लग रहा था जिसमें

मुझको मेरा बचपन बुलाता था


वो मदमस्त हवा का झोंका-सा

खुशियाँ तलाशने निकला था

मैं गुमसुम आज सितारों बीच

अंधियारों में घिरा हूँ






वो मोहल्ले की संकरी गलियों में

बादशाह बना घूमता था

मैं इस बड़े-से शहर में

इक मोहरा बन के रह गया हूँ


||वो माँ का राजा बेटा था

मैं माँ का राजा बेटा हूँ||


वो खेल-खेल न थकता था

मैं खेलने को तरसता हूँ

वो रात में न पढता था

मैं रात भर जग पढता हूँ




हो घायल जब, वो रोता था

हूँ जख्मी, पर मुस्कुराता हूँ

वो रो-रोकर दर्द दिखता था

मैं मुस्कराहट में गम छिपाता हूँ


वो बोझ बस्ते का उठता था

मैं ज़िन्दगी कंधे पर ढोता हूँ

वो खुश सदा ही रहता था

मैं खुश रहना का ढोंग करता हूँ


||वो माँ का राजा बेटा था

मैं माँ का राजा बेटा हूँ||


वो दोस्त खूब बनाता था

मैं दोस्ती निभाता हूँ

वो ख्वाब खूब सजता था

मैं असल जीवन बिताता हूँ


||वो माँ का राजा बेटा है

मैं माँ का राजा बेटा हूँ ||
















 
 
 

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