काश...
- Nyasa Singh
- Sep 14, 2020
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"काश ये मंज़र सिर्फ काश न होता काश ये मंज़र सिर्फ काश न होता"
काश हम फिरसे नानी की गोद में झूल पाते
काश हम दादी माँ से पहले की भाँती घंटो बतियाते
काश हम फिरसे बच्चे बन जाते
काश हम फिरसे बचपन जी पाते
काश हम मदमस्त सिर्फ खेला करते
दशहरा दिवाली में संग मेला करते
नानी की कहानी, दादी की कविताएँ फिर सुन पाते
फिर से कानों में गीता के श्लोक गुनगुनाते
फिर माँ के डर से दादी के पल्लू में छिप पाते
काश हम फिरसे बच्चे बन जाते
काश मोहल्ले का वो गोला होता
और वो २ रूपए वाला कोला होता
काश फिर वो गालियां होती
फिरसे माथे पर सजी माँ की बालियां होती
काश वो मिटटी के खिलौने होते
और हम सभी बुराइयों से अनजाने होते
।।काश हम फिरसे बचपन जी पाते
काश हम फिरसे बच्चे बन जाते।।
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